एक थी फूलन, 11 साल की उम्र में बलात्कार, फिर बीहड़ के रास्ते संसद तक पहुंच गई
11 साल की लडक़ी के साथ पति ने किया बलात्कार, फिर ठाकुरों ने सामूहिक दुष्कर्म
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37 बरस का वक्त गुजर गया, दुनिया सुर्ख लाल गुलाब पर फिदा होकर वैलेंटाइन-डे पर चहक रही थी, उसी शाम को यूपी के राबिनहुड शहर कानपुर से करीब 100 किलोमीटर दूर इंतकाम की आग में झुलसती महिला ने गुलाब के बजाय लाल सुर्ख खून से इतिहास रच दिया था। 14 फरवरी 1981 की तारीख ने अपने साथ हुए अत्याचार का इंतकाम लेने के लिए बेगुनाहों के नरसंहार की कहानी से फूलन को बीहड़ की रानी बना दिया। फूलन अब दुनिया में नहीं है, लेकिन उसका नाम एक कहावत बन चुका है। बागी तेवरों वाली महिलाओं को फूलन की उपमा खुद बयान करता है कि यूपी के जालौन के बीहड़ों में आबाद पुरवा नामक गांव में 10 अगस्त 1963 में एक गरीब मल्लाह के घर पैदा हुई बेटी ने अपनी जिद की बदौलत बीहड़ और जेल के बाद संसद तक का सफर कैसे तय किया। उसकी अम्मा को फूलन के नाम पर गांव में एक स्मारक का इंतजार है, जबकि फूलन की गोलियों से मौत के शिकार हुए ठाकुरों के वंशजों के दिल में सजा नहीं मिलने की टीस है।
बैंडिट क्वीन की कहानी वाकई है बेहद निराली सच है कि हिंदुस्तान की माटी में जिद और जबरदस्ती का खनिज है। फूलन की देह में जिद थी, जबकि ठाकुरों के जिस्म में जबरदस्ती। फूलन एक ऐसा नाम है, जोकि देखते-देखते देवी बन गई.... फूलनदेवी। कच्ची उम्र में शादी, फिर अधेड़ पति के जरिए बलात्कार की शिकार, इसके बाद गांव के ठाकुर छोरों की जबरदस्ती। बेइज्जती के खिलाफ बीहड़ का सफर, वहां भी ठाकुर डकैतों की जबरदस्ती की शिकार बनना और फिर इंतकाम की आग में बेहरमी को ताजिंदगी का जख्म। ऐसे ही कई उतार-चढ़ाव के बाद फूलनदेवी का संसद तक पहुंचना किसी अजूबी कहानी जैसा लगता है। फूलन की जिंदगी भी उसी आग में खाक हो गई, जोकि उसकी छाती में कभी धधकती थी।
फूलन की कहानी बड़ी विचित्र है। कदम-कदम पर धोखा और फरेब की कहानी है। जालौन के बीहड़ों में बसे पुरवा गांव में मल्लाहों और ठाकुरों की आबादी बराबर है, लेकिन दबंग ठाकुरों का गांव में शासन चलता था और आज भी हुकुमत है। इसी गांव से फूलन की कहानी शुरू होती है। देवीदीन मल्लाह और मूला की चार संतानों में फूलन सबसे छोटी थी। उसके पिता के खेतों को उसके ताऊ ने लड़-झगडक़र कब्जा कर लिया था। इसी बात को लेकर मुकदमा चल रहा था। पिता थोड़ा-बहुत कमाते थे, जोकि वकील की फीस और अदालत के खर्चों में खप जाता था। फूलन कुछ बड़ी हुई तो मजदूरी करने लगी। एक दिन एक दबंग ठाकुर ने मजदूरी देने से इंकार किया तो रात में उसका कच्चा मकान गिरा दिया। बढ़ती उम्र के साथ ही गांव में फूलन के दुश्मन बढऩे लगे थे। इसी माहौल में फूलन को गांव से बाहर करने के लिए चचेरे भाई मयादीन मल्लाह ने पड़ोसी गांव के अधेड़ पुत्तीलाल से उसका ब्याह रचा दिया। पुत्तीलाल ने 11 साल की कच्ची उम्र में फूलन का बलात्कार किया। दर्द से वह चीखती तो सास भी प्रताडि़त करती थी। ऐसे में फूलन एक दिन ससुराल छोडक़र मायके भाग आई।
मायके लौटकर फूलन ने तीन साल गुजर लिए थे। उसके तेवर बागी थे। एक दिन मामूली कहा-सुनी के बाद गांव के दबंग नौजवानों ने घर में घुसकर उसके मां-बाप के सामने उसके साथ गैंगरेप और अप्राकृतिक सेक्स किया। फूलन ने पंचायत तक बात पहुंचाई तो वहां उसकी सुनवाई नहीं हुई। उधर, फूलन के बागी तेवरों को देखकर दबंगों ने एक दस्यु गैंग के जरिए फूलन का अपहरण करा दिया। अब फूलन पुरवा गांव से निकलकर बीहड़ पहुंच चुकी थी। बीहड़ में अगवा फूलन को अपनी सहजाति के विक्रम मल्लाह का सहारा मिला, लेकिन श्रीराम गैंग ने विक्रम को मार गिराया। फूलन का पहला प्यार बेमौत मारा गया और वह ठाकुरों के कब्जे में बेहमई गांव की एक कोठरी में कैद थी। इस कोठरी में लालाराम और श्रीराम के साथ-साथ 21 दिन तक सात ठाकुरों ने उसके जिस्म को नोंचा। फिर एक दिन उसे गांव में निर्वस्त्र घुमाने के बाद आजाद कर दिया। अब फूलन के दिल में इंतकाम की ज्वाला धधकने लगी थी।
फूलन ने नया गैंग बना लिया था। अब वह फूलन नहीं, बल्कि फूलनदेवी थी। उसकी गिनती बड़े डकैतों में होने लगी थी। चर्चा होती थी कि फूलन का निशाना बड़ा अचूक था और उससे भी ज्यादा कठोर था उनका दिल। ठाकुरों से उसकी दुश्मनी थी, इसलिए उन्हें अपनी जान का खतरा हमेशा महसूस होता था। सामूहिक दुष्कर्म और गांव में निर्वस्त्र करने की घटना का बदला लेने को बेचैन फूलन को खबर मिली कि बेहमई गांव में ठाकुर डकैत श्रीराम भी राम सिंह की बिटिया की शादी में शामिल होने के लिए आया था, लेकिन वह भाग निकला। खुन्नस में फूलन ने शनिवार की शाम ठाकुर परिवारों के बीस लोगों को एक लाइन में खड़ा करने के बाद गोलियों से भून डाला। इस कांड ने फूलन को देश-दुनिया में कुख्यात बना दिया। कई राज्यों की पुलिस उसके पीछे थी। एक के बाद एक साथी डकैतों का एनकाउंटर हो गया। ऐसे में अकेली पड़ी फूलन ने मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर दिया।
मुलायम सिंह यादव भी जिद्दी स्वभाव के हैं। उन्हें फूलन की जिद के पीछे जुनून नजर आया। उन्होंने फूलन को जेल से रिहा कराया और मिर्जापुर से लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बना दिया। वर्ष 1996 में मिर्जापुर के सांसद के रूप में फूलन संसद पहुंच चुकी थीं। तमाम हो-हल्ला हुआ, लेकिन मुलायम अडिग रहे। इसी कारण फूलन ने उन्हें अपना मानद पिता स्वीकार कर लिया। दो मर्तबा सांसद चुने जाने के बाद केवल 38 साल की उम्र में दिल्ली स्थित घर के सामने ही खुद को क्षत्रिय शूरवीर कहने वाले शेरसिंह राणा ने 25 जुलाई 2001 को मिर्जापुर की तत्कालीन सांसद को गोलियों से भून डाला था। चंबल के बीहड़ों से संसद पहुंचने वाली फूलन देवी पर ब्रिटेन में आउट लॉ नाम की एक किताब प्रकाशित हुई है जिसमें उनके जीवन के कई पहलुओं पर चर्चा है। फूलन देवी को जेल की सजा के बारे में चर्चा के लिए लेखक रॉय मॉक्सहैम ने 1992 में उनसे पत्राचार शुरू किया। जब फूलन देवी ने उनके पत्र का जवाब नहीं दिया तो रॉय मॉक्सहैम भारत आए और उन्हें फूलन देवी को करीब से जानने का मौका मिला।
फूलन तो दुनिया छोड़ गई, लेकिन बेहमई बेकरार है। फूलन की बंदूक की गोली से निर्दोष ठाकुरों के खून से लाल हुई माटी आज भी बेकरार है। हत्याकांड की मुख्य कातिल का कत्ल हो चुका है, दर्जनों गवाहों की मौत हो गई है। बावजूद मुकदमा खत्म नहीं हुआ है। घटना के 31 साल बाद मुकदमा शुरू हुआ, इसी दरम्यान ज्यादातर किरदार दुनिया छोड़ गए। तारीख पर तारीख से परेशान गांव की गुहार सुनने के लिए जनसेवकों के पास वक्त नहीं है। वजह है गांव की छोटी आबादी। सिर्फ 40 परिवारों के 178 वोटरों के लिए 100 किलोमीटर दूर पहुंचने की फुर्सत कहां? बेहमई का दर्द सिर्फ फूलनदेवी का दिया जख्म नहीं है, बल्कि वक्त-वक्त पर नेताओं ने इस जख्म को कुरेदकर नासूर बना दिया है। 14 फरवरी 1981 के अगले दिन से शुरू हुए वादों की फेहरिस्त अंतहीन है। उस वक्त कांग्रेसी नेताओं ने बेहमई के विकास के वादे किए थे। बदलते वक्त के साथ जनता दल, फिर सपा और बसपा ने बेहमई को तमाम सपने दिखाए। सपनों के सौदागरों की सूची में भाजपा के नेताओं के नाम भी दर्ज हैं। वोटों के लालच में या चर्चित होने के लिए नेताओं के काफिले तमाम मर्तबा बेहमई की सरहद में दाखिल हुए। दर्द सुना और अपनापन जताने के साथ विकास शुरू करने की एक तारीख थमाकर लौट गए। लौटते ही वादे भूल गए और बेहमई के हिस्से में सिर्फ इंतजार आया।
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